गंगापुर सिटी की स्पेशल डिश जिसका नाम ही स्वयं "स्पेशल" है । उस व्यंजन पर चर्चा करने से पहले में आपको बता दूं कि दुनिया मे कई तरह के टेलेंटेड लोग पाए जाते है। जैसे कि गायक, खिलाड़ी, नेता, अभिनेता (अभिनेत्री भी), डांसर, कवि, जोकर आदि आदि । लेकिन इन सबके अलावा "स्पेशल" बनाना और खाने के बाद उसमें कमी निकाल कर सुधार हेतु सलाह देना भी एक प्रकार का स्पेशल टेलेंट है ।
जो लोग इस स्पेशल डिश के बारे में नही जानते है उन्हें बात दु की वैसे तो ये सिर्फ आलू की सब्जी व मोटी कड़क रोटी ही है । लेकिन इस पर अगर टिप्पणी करें तो करीब हजारो पन्ने भर जाए ।कालांतर में विद्धानों की उपेक्षा व चटोरो कि स्वादलोलुपता के कारण इसकी लोकप्रियता तो बढ़ती गई । लेकिन इतिहास व समसामयिक खबरों में यह स्पेशल डिश अपना विशेष स्थान नही बना पाई।
जो लोग इस स्पेशल डिश के बारे में नही जानते है उन्हें बात दु की वैसे तो ये सिर्फ आलू की सब्जी व मोटी कड़क रोटी ही है । लेकिन इस पर अगर टिप्पणी करें तो करीब हजारो पन्ने भर जाए ।कालांतर में विद्धानों की उपेक्षा व चटोरो कि स्वादलोलुपता के कारण इसकी लोकप्रियता तो बढ़ती गई । लेकिन इतिहास व समसामयिक खबरों में यह स्पेशल डिश अपना विशेष स्थान नही बना पाई।
सम्भवतः इस डिश की खोज राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के गंगापुर सिटी में होने के कारण इसे गंगापुर की स्पेशल कहा जाता है। वैसे आजकल इस स्पेशल डिश के प्रेमी देश विदेश में भी बहुत है।
आइये शुरू करते है इस पर विशेष चर्चा - दरअसल यह शुद्ध देशी घी से बना एक प्रकार का स्वादिष्ट शाकाहारी व्यंजन है । जो बड़ी मेहनत से व एक्सपर्ट की देखरेख में किसी विशेष आयोजन पर ही बनाया जाता है। बजट में महंगा होने के कारण इसकी गिनती लग्जरी फ़ूड में होती है । तो अगर आप इसे खाने के लिए ₹500 का किराया भाड़ा लगाकर भी कहीं जीमने पहुँच जाते है । तो कोई घाटे की बात नही है ।
विशेष बात यह है कि शुरुआत में मीठी लगने वाली इस स्पेशल डिश का तीखापन सुबह शौचालय में महसुस होता है । इसी कारणवश बवासीर (पाईल्स) के रोगी इस स्पेशल डिश से दूर रहते है ।
दरअसल स्पेशल डिश को समाज मे प्रतिष्ठा का मुद्दा भी बना लिया जाता है । प्रायः इसमे एक्सपर्ट ज्यादातर पुरुष ही होते है । अगर लड़के की सरकारी नौकरी न हो लेकिन उसे स्पेशल बनाना आता हो, तो उसकी सगाई के चांस थोड़े ज्यादा जल्दी बनते है ।
घर आये जमाई की खातिरदारी में मुख्य भूमिका स्पेशल डिश की ही रहती है।
अगर आपने किसी आयोजन पर स्पेशल नही बनाई हो या फिर स्पेशल तो बना ली हों लेकिन अपने करीबी को आमंत्रित नही किया हो, तो ऐसी स्थिति में आप पक्के निंदा के पात्र बन जाते है।
स्पेशल में शुद्ध देशी घी में अगर थोड़ी सी भी मिलावट हो - तो समाज के कथित ठेकेदारों द्वारा हर मंच व चौपाल पर आपकी निन्दा की जाती है ।
आइये अब हम इसे बनाने की प्रक्रिया पर शार्ट में नजर डाल लेते है । इसके लिए सबसे पहले एक एक्सपर्ट द्वारा आलुओ के ढेर में से विशेष आकार के आलुओ का चयन किया जाता है । फिर उन आलुओं को बारीकी से छीलकर, प्यार से काटकर, पानी मे नहलाकर , आराम से नर्म अखबार के पेज या साफ कपड़े पर सूखने के लिए डाल दिया जाता है। और सूखने के बाद आलुओ को गरमा गरम घी में तला जाता है ।
उधर दूसरे एक्सपर्ट द्वारा प्याज, टमाटर ,लहसुन आदि विशेष सामग्री को मिक्सी में पीसकर ग्रेवी के लिए उसका पेस्ट बनाकर, और फिर गरमा गरम घी के अंदर सभी प्रकार के मसाले, पेस्ट, मावा, पनीर, दही,सूखे मेवे, तले आलू आदि को करीब 2 घण्टे तक निश्चित तापमान पर पकाया जाता है ।
और एक तरफ टिक्कड़(मोटी कड़क रोटी) बनाने के लिये आटे में सौंफ,सूजी,कसूरी मेथी, बेसन, हल्दी, मूंड आदि मिलाकर आटे को गूंथकर सिगड़ी या चूल्हे पर कड़क टिक्कड़ सेकी जाती है । और फिर सर्वप्रथम मुख्य जांचकर्ता द्वारा टेस्ट करने के बाद ही सबको खिलाई जाती है । कई बार तो सभी आगंतुक मिलकर के एक-एक दौने को काम मे लेते हुए जांचकर्ता की सामुहिक भूमिका निभाते पाए जाते है।
स्पेशल बनाने के दौरान जो खुशबू आती है। आह ! यहीं से इसके स्वाद के प्रति लोगो मे लोलुपता बढ़ जाती है । व खुशबू के द्वारा ही गली मोहल्लों में आस पास के लोगो को इस बारे में पता लग जाता है । मैंने लेख के शुरू में ही कह दिया था कि इस पर टिप्पणी करें तो हजारो पन्ने कम पड़ जाए तो साथियो में केशव फूलबाज इस मुद्दे पर यहीं अपनी लेखनी को विराम देता हूँ । फिर मिलते है । जय राम जी की ।
(यह लेखक के निजी अनुभव विचार है)
केशव फूलबाज
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