अमलतास :: K R MEENA

जैसे जेठ की तपती दुपहरी में
जब खिल उठता है अमलतास
तो अपनी स्वर्णिम आभा से
बांध लेता है दृष्टि को
और अपने खिलने के 
सवा माह में
बुला लेता है वृष्टि को....


अमलतास विचारशाला

वैसे ही 
जीवन की तपती दुपहरी में
जब तुम आती हो मेरी अंक में
तो मेरे मन के अमलतास भी
खिलखिला पड़ते हैं,
मैं भूल जाता हूँ इस जीवन की तपन को
और ज़ेहन में तत्काल ही 
बुला लेती हो
भावनाओं की वृष्टि को.....






K R Meena