जमलो की जूती :: K R MEENA

अपने फटे हुए पैर की 
टूटी हुई जूती को बदलने के लिए
जमलो मकडम जब पिता आंदो से
अनुमति लेकर गई थी पेरुर(तेलंगाना)

तब 12 वर्षीय एकमात्र संतान को 
भेजते हुए रोया होगा आंदो
लेकिन जूती को बदलने के बहाने से 
बदलना चाहता था अपने घर की व्यवस्था को
और भेज दिया प्रवास पर... 


Vichardhara विचारशाला



इस बीच परदेश से आई महामारी ने
विवश कर दिया प्रवासियों को
अपनी जड़ों की ओर लौटने पर...
नन्हीं जमलो ने भी तय किया 
400 किलोमीटर का सफर
अपनी टूटी हुई जूतियों पर...

कई दिन तक छुपते-छुपाते
पूंजीपतियों के लिए बनाई सड़कों से दूर
पगडंडियों के रास्ते चलती रही अनथक
किन्तु बीच में पड़ने वाली गोदावरी का 
पानी पीकर कब तक चलती आखिर....
खाली पेट,नंगे बदन वह चलती रही अपनी जड़ों की ओर तथा रखती रही टूटी जूतियों में आँक के पत्ते
और उसके बदन में रिसता रहा 
व्यवस्था का दंश अंदर ही अंदर...

जब टूट चुकी थी उसके पैरों की जूती
उससे पहले ही टूट चुकी थी उसकी जिजीविषा
और टूट चुकी थी आंदो की व्यवस्था परिवर्तन की आश भी
आखिर 400 किलोमीटर से अधिक का सफर
थम ही गया आदेड(बीजापुर-छ.ग.) से
महज़ 14 किलोमीटर पहले ही...
Vichardhara vicharshala

और अंत में एक सरकारी कारिंदे ने 
आंदो को सौंप दिया 
जमलो की मृत देह के साथ
टूटी हुई जूती को...
बेबस आंदो देखता रहा देर तक
कभी फटेहाल जमलो को
कभी फटी हुई जूती को
और कभी
उस फटी हुई व्यवस्था को....





K R Meena