ऊँचे आकाश में उड़ती हूँ,
विस्तृत गगन में,
नीले अंबर में,
हवा के संग-संग इठलाती हूँ,
स्वतंत्र ना होकर भी खुश हूँ,
जिसकी डोर तोरे हाथ में,
ऐ मनुज! मैं वो पतंग हूँ,
अपने सामर्थ्य से बड़करआज कुछ कहती हूँ,
एक छोटी बात तुझे बताती हूँ,
अपने मन को तू मुझसा जान,
दृढ़ता से उसको थाम,
हवा विलासित प्रलोभनो की
उसे बहा ना ले जाये कहीं,
लक्ष्य से निगाहें भटक ना जाये कहीं,
संभल खड़ा रह मुश्किलो के आगे,
बेपरवाही मे कट ना जाये पतंग कहीं,
अपने हुनर से दे तू नई ऊँचाई मुझको,
सफलता के शिखर मिलेंगें,
बस थामे रख मन की पतंग को,
कहना बस इतना ही था मुझको,
अब मर्जी तेरी दे ढील या तू खींच,
मन तेरा मंजिल तेरी,
डोर तेरी पतंग तेरी....
( ये लेखिका के निजी विचार है )
🌿डॉ.वर्तिका गुलाटी🌿
विस्तृत गगन में,
नीले अंबर में,
हवा के संग-संग इठलाती हूँ,
स्वतंत्र ना होकर भी खुश हूँ,
जिसकी डोर तोरे हाथ में,
ऐ मनुज! मैं वो पतंग हूँ,
अपने सामर्थ्य से बड़करआज कुछ कहती हूँ,
एक छोटी बात तुझे बताती हूँ,
अपने मन को तू मुझसा जान,
दृढ़ता से उसको थाम,
हवा विलासित प्रलोभनो की
उसे बहा ना ले जाये कहीं,
लक्ष्य से निगाहें भटक ना जाये कहीं,
संभल खड़ा रह मुश्किलो के आगे,
बेपरवाही मे कट ना जाये पतंग कहीं,
अपने हुनर से दे तू नई ऊँचाई मुझको,
सफलता के शिखर मिलेंगें,
बस थामे रख मन की पतंग को,
कहना बस इतना ही था मुझको,
अब मर्जी तेरी दे ढील या तू खींच,
मन तेरा मंजिल तेरी,
डोर तेरी पतंग तेरी....
( ये लेखिका के निजी विचार है )
🌿डॉ.वर्तिका गुलाटी🌿