अमलतास :: K R MEENA

जैसे जेठ की तपती दुपहरी में
जब खिल उठता है अमलतास
तो अपनी स्वर्णिम आभा से
बांध लेता है दृष्टि को
और अपने खिलने के 
सवा माह में
बुला लेता है वृष्टि को....


अमलतास विचारशाला

वैसे ही 
जीवन की तपती दुपहरी में
जब तुम आती हो मेरी अंक में
तो मेरे मन के अमलतास भी
खिलखिला पड़ते हैं,
मैं भूल जाता हूँ इस जीवन की तपन को
और ज़ेहन में तत्काल ही 
बुला लेती हो
भावनाओं की वृष्टि को.....






K R Meena


गंगापुर सिटी की स्पेशल डिश आखिर क्यो है इतनी स्पेशल

गंगापुर सिटी की स्पेशल डिश जिसका नाम ही स्वयं "स्पेशल" है । उस व्यंजन पर चर्चा करने से पहले में आपको बता दूं कि दुनिया मे कई तरह के टेलेंटेड लोग पाए जाते है। जैसे कि गायक, खिलाड़ी, नेता, अभिनेता (अभिनेत्री भी), डांसर, कवि, जोकर आदि आदि । लेकिन इन सबके अलावा "स्पेशल" बनाना और खाने के बाद उसमें कमी निकाल कर सुधार हेतु सलाह देना भी एक प्रकार का स्पेशल टेलेंट है ।

जो लोग इस स्पेशल डिश के बारे में नही जानते है उन्हें बात दु की वैसे तो ये सिर्फ आलू की सब्जी व मोटी कड़क रोटी ही है । लेकिन इस पर अगर टिप्पणी करें तो करीब हजारो पन्ने भर जाए ।कालांतर में
विद्धानों की उपेक्षा व चटोरो कि स्वादलोलुपता के कारण इसकी लोकप्रियता तो बढ़ती गई । लेकिन इतिहास व समसामयिक खबरों में यह स्पेशल डिश अपना विशेष स्थान नही बना पाई।

सम्भवतः इस डिश की खोज राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के गंगापुर सिटी में होने के कारण इसे गंगापुर की स्पेशल कहा जाता है। वैसे आजकल इस स्पेशल डिश के प्रेमी देश विदेश में भी बहुत है। 

 आइये शुरू करते है इस पर विशेष चर्चा - दरअसल यह शुद्ध देशी घी से बना एक प्रकार का स्वादिष्ट शाकाहारी व्यंजन है । जो बड़ी मेहनत से व एक्सपर्ट की देखरेख में किसी विशेष आयोजन पर ही बनाया जाता है। बजट में महंगा होने के कारण इसकी गिनती लग्जरी फ़ूड में होती है । तो अगर आप इसे खाने के लिए ₹500 का किराया भाड़ा लगाकर भी कहीं जीमने पहुँच जाते है । तो कोई घाटे की बात नही है । 


विशेष बात यह है कि शुरुआत में मीठी लगने वाली इस स्पेशल डिश का तीखापन सुबह शौचालय में महसुस होता है । इसी कारणवश बवासीर (पाईल्स) के रोगी इस स्पेशल डिश से दूर रहते है । 


 दरअसल स्पेशल डिश को समाज मे प्रतिष्ठा का मुद्दा भी बना लिया जाता है । प्रायः इसमे एक्सपर्ट ज्यादातर पुरुष ही होते है । अगर लड़के की सरकारी नौकरी न हो लेकिन उसे स्पेशल बनाना आता हो, तो उसकी सगाई के चांस थोड़े ज्यादा जल्दी बनते है । 

घर आये जमाई की खातिरदारी में मुख्य भूमिका स्पेशल डिश की ही रहती है। 
अगर आपने किसी आयोजन पर स्पेशल नही बनाई हो या फिर स्पेशल तो बना ली हों लेकिन अपने करीबी को आमंत्रित नही किया हो, तो ऐसी स्थिति में आप पक्के निंदा के पात्र बन जाते है। 

स्पेशल में शुद्ध देशी घी में अगर थोड़ी सी भी मिलावट हो - तो समाज के कथित ठेकेदारों द्वारा हर मंच व चौपाल पर आपकी निन्दा की जाती है । 


Gangapur ki special sabji tikkad गंगापुर की स्पेशल डिश सब्जी टिक्कड़

आइये अब हम इसे बनाने की प्रक्रिया पर शार्ट में नजर डाल लेते है । इसके लिए सबसे पहले एक एक्सपर्ट द्वारा आलुओ के ढेर में से विशेष आकार के आलुओ का चयन किया जाता है । फिर उन आलुओं को बारीकी से छीलकर, प्यार से काटकर, पानी मे नहलाकर , आराम से नर्म अखबार के पेज या साफ कपड़े पर सूखने के लिए डाल दिया जाता है। और सूखने के बाद आलुओ को गरमा गरम घी में तला जाता है । 


उधर दूसरे एक्सपर्ट द्वारा प्याज, टमाटर ,लहसुन आदि विशेष सामग्री को मिक्सी में पीसकर ग्रेवी के लिए उसका पेस्ट बनाकर, और फिर गरमा गरम घी के अंदर सभी प्रकार के मसाले, पेस्ट, मावा, पनीर, दही,सूखे मेवे, तले आलू आदि को करीब 2 घण्टे तक निश्चित तापमान पर पकाया जाता है । 

और एक तरफ टिक्कड़(मोटी कड़क रोटी) बनाने के लिये आटे में सौंफ,सूजी,कसूरी मेथी, बेसन, हल्दी, मूंड आदि मिलाकर आटे को गूंथकर सिगड़ी या चूल्हे पर कड़क टिक्कड़ सेकी जाती है । और फिर सर्वप्रथम मुख्य जांचकर्ता द्वारा टेस्ट करने के बाद ही सबको खिलाई जाती है । कई बार तो सभी आगंतुक मिलकर के एक-एक दौने को काम मे लेते हुए जांचकर्ता की सामुहिक भूमिका निभाते पाए जाते है। 

स्पेशल बनाने के दौरान जो खुशबू आती है। आह ! यहीं से इसके स्वाद के प्रति लोगो मे लोलुपता बढ़ जाती है । व खुशबू के द्वारा ही गली मोहल्लों में आस पास के लोगो को इस बारे में पता लग जाता है । मैंने लेख के शुरू में ही कह दिया था कि इस पर टिप्पणी करें तो हजारो पन्ने कम पड़ जाए तो साथियो में केशव फूलबाज इस मुद्दे पर यहीं अपनी लेखनी को विराम देता हूँ । फिर मिलते है । जय राम जी की ।


(यह लेखक के निजी अनुभव विचार है)

author

केशव फूलबाज
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जमलो की जूती :: K R MEENA

अपने फटे हुए पैर की 
टूटी हुई जूती को बदलने के लिए
जमलो मकडम जब पिता आंदो से
अनुमति लेकर गई थी पेरुर(तेलंगाना)

तब 12 वर्षीय एकमात्र संतान को 
भेजते हुए रोया होगा आंदो
लेकिन जूती को बदलने के बहाने से 
बदलना चाहता था अपने घर की व्यवस्था को
और भेज दिया प्रवास पर... 


Vichardhara विचारशाला



इस बीच परदेश से आई महामारी ने
विवश कर दिया प्रवासियों को
अपनी जड़ों की ओर लौटने पर...
नन्हीं जमलो ने भी तय किया 
400 किलोमीटर का सफर
अपनी टूटी हुई जूतियों पर...

कई दिन तक छुपते-छुपाते
पूंजीपतियों के लिए बनाई सड़कों से दूर
पगडंडियों के रास्ते चलती रही अनथक
किन्तु बीच में पड़ने वाली गोदावरी का 
पानी पीकर कब तक चलती आखिर....
खाली पेट,नंगे बदन वह चलती रही अपनी जड़ों की ओर तथा रखती रही टूटी जूतियों में आँक के पत्ते
और उसके बदन में रिसता रहा 
व्यवस्था का दंश अंदर ही अंदर...

जब टूट चुकी थी उसके पैरों की जूती
उससे पहले ही टूट चुकी थी उसकी जिजीविषा
और टूट चुकी थी आंदो की व्यवस्था परिवर्तन की आश भी
आखिर 400 किलोमीटर से अधिक का सफर
थम ही गया आदेड(बीजापुर-छ.ग.) से
महज़ 14 किलोमीटर पहले ही...
Vichardhara vicharshala

और अंत में एक सरकारी कारिंदे ने 
आंदो को सौंप दिया 
जमलो की मृत देह के साथ
टूटी हुई जूती को...
बेबस आंदो देखता रहा देर तक
कभी फटेहाल जमलो को
कभी फटी हुई जूती को
और कभी
उस फटी हुई व्यवस्था को....





K R Meena


सापत ताड़त परुष कहंता, बिप्र पूज्य अस गावहिं संता का भावार्थ

सापत ताड़त परुष कहंता।
बिप्र पूज्य अस गावहिं संता।
पूजिअ बिप्र सील गुन हीना।
सूद्र न गुन गन ग्यान प्रबीना।।

दरअसल रामचरित मानस की इन चौपाई के सहारे कुछ नकारात्मक विचारधारा के लोगो द्वारा आजकल सोशल मीडिया पर नवयुवकों को भ्रमित व रामचरित मानस का दुष्प्रचार किया जाता है।
शाप देता हुआ मारता हुआ shapat tadat ramayan vicharshala विचारशाला

आइये इस पर चर्चा करते है ।

दरअसल यह तुलसीदास जी कृत रामचरित मानस की चौपाई है ।
हर चौपाई का संबंध अपनी अगली व पिछली चौपाई से रहता है । इसका संबंध भी पिछली चौपाई व राक्षश कबंध से है । हालांकि रामचरितमानस में कबंध राक्षस के बारे में कम विवरण है अपितु महर्षि वाल्मीकि जी कृत रामायण में विस्तृत विवरण है ।
सापत ताड़त शाप देता हुआ मारता हुआ shapat tadat ramayan vicharshala

अब आते है मुख्य बात पर,,, दअरसल कबंध राक्षस द्वारा ऋषियों को परेशान करने के कारण  पूर्व जन्म में दुर्वासा ऋषि ने क्रोधित होकर श्राप दिया था । इसलिए यहाँ कबंध राक्षस  श्राप व ऋषि दुर्वासा के क्रोध के कारण प्रभु श्री राम से ऋषि दुर्वासा के बारे में भला बुरा कहता है।

तो श्रीरामजी ने कहा कि शाप देता हुआ और फटकारता हुआ ब्राह्मण भी पूज्य है इस वाक्य के पीछे श्रीरामजी का अभिप्राय था कि दुर्वासा जी के अवगुण तो तू देख रहा है पर इनके जीवन में जो तप है, त्याग है, गुण है और जो विशेषताएँ हैं उनके उपर तेरी दृष्टि नहीं जाती| (क्योंकि कबंध के कहने का अभिप्राय था कि दुर्वासा ब्राह्मण होकर भी बहुत क्रोधी हैं) उनमे क्रोध की मात्रा कुछ अधिक है परन्तु श्राप का कारण तो आपकी (कबंध राक्षस) अमर्यादा ही थी ।

अर्थात् शाप देता हुआ, ताड़ना करता हुआ और कठोर वचन कहता हुआ भी दुर्वासा जी जैसा विप्र पूजनीय है क्योंकि संतजन भी उनकी महिमा को भलीभाँति जानते हैं कि दुर्वासा जी रुद्रांश हैं 'क्षणे रुष्टा: क्षणे तुष्टा: रुष्टा तुष्टा क्षणे-क्षणे' जिनका स्वभाव है। लेकिन उनका तपोबल व ज्ञान महान है । जिसमें न शील है और न ही कोई विशेष गुण; तो क्या इन्हें शूद्र मान लिया जाए? नहीं.! 
"शूद्र न"  ये शूद्र नहीं हैं। ये ज्ञान में प्रवीण हैं ।


कबंध राक्षस शाप देता हुआ मारता हुआ shapat tadat ramayan vicharshala

चूंकि कबंध का अर्थ व  कबंध उसे बोलते है जिसके शरीर पर सिर नहीं होता| बाकी सारा शरीर होता है । कंबध के पेट मे मुख था । व वह विचित्र शरीर वाला राक्षस था ।

शारीरिक भाव मे  सिर के अंग को बोला जाता हैं ब्राहमण, जैसे पैरों को शूद्र आदि| जबकि शरीर में सब कुछ सभी अंग होने  चाहिए । लेकिन कबंध के विचित्र शरीर मे सिर नही था।

यहाँ ब्राह्मण की बात श्रीराम द्वारा कबंध के अंदर की जो द्वेष बुद्धि है उसको मिटाने के लिए कहते हैं| क्योंकि कबंध श्री दुर्वासा के शाप से दुखी था|

चूंकि तुलसीदास जी कृत रामचरित मानस की अपेक्षा महर्षि वाल्मीकि जी की रामायण प्राचीन है । तुलसीदास जी ने मानस की रचना अवधि में इसलिए कि थी कि ताकि गैर संस्कृत भाषी, कम पढ़ा व आम व्यक्ति भी इसे समझ सके, इसलिए इस पर टिका टिप्पणी करना थोड़ा कठिन है । सम्भवतः पूर्व में व्याख्याकारों द्वारा गलत व्याख्याएँ की गई है ।

आजकल कुछ नकारात्मक विचारधारा के लोग इन चौपाई की आड़ लेकर तुलसीदास जी को गैर ब्राह्मण विरोधी बताते है ।
जिसका  खंडन भी तुरंत ही  अगली कुछ चौपाई में मिल जाता है | श्रीरामजी कबंध से मिलने के पश्चात सीधे माँ शबरी (जो कि गैर ब्राह्मण है ) के आश्रम पहुँचते है। और माँ शबरी के प्रति प्रेम व आदर तो सर्वजगत को विदित है।

कुछ अति उत्साही ब्राह्मण लोगो द्वारा भी आजकल इस चौपाई का सहारा लेकर स्वंय का महिमामंडन किया जाता है कि अपराध करने पर भी ब्राह्मण महान है। जो कि गलत है क्योंकि खर, दूषण, कुम्भकर्ण व स्वयं रावण भी ब्राह्मण ही था जिसका प्रभु श्री राम ने वध किया । अपराधी अपराधी होता है भले वह कोई भी हो।
बाकी :-
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखी तैसी ।।

(उपरोक्त लेख की रचना रचनाकार केशव फूलबाज व  हेमराज मीना द्वारा आपसी चर्चा द्वारा की है।  इसका उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुंचाना नही है । हमारा उद्देश्य धार्मिक ग्रंथों के प्रति फैल रही अफवाहों का खण्डन करने का प्रयास करना है । )


हेमराज मीना
टोडाभीम, राज.
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केशव फूलबाज

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धुंधली धुंधली सी ये हवायें :: श्रीकांत शर्मा

धुंधली धुंधली सी ये हवायें कुछ रूहानी होने लगी है ।

अब मन और तन को सुहाने लगी है, 
मेरे देश के अन्नदाता पर इल्ज़ामों की बौछार करने वालो की भी आत्मा कुछ सहमने लगी है ।।

प्रकृति की अलौकिक छटाएँ अब निखरने लगी है,
धरती माँ कुछ मुस्करा कर हँसने लगी है ।
प्रकृति की अनमोल वस्तुओ को कागज के टुकड़ों से
 तोलने वालो की भी आंखे खुलने लगी है ।।

पक्षियों का कलरव सुन कर रूह भी निखरने लगी है,
 दूर नील गगन के ऊँचे पर्वत की झलक भी 
अब दिखाई देने लगी है ।
इंसान को सवारने में सब कुछ खो चुकी, 
धरती माँ भी आज निखरने लगी है ।।


Vicharshala विचारशाला

धुंधली धुंधली सी ये हवायें कुछ रूहानी होने लगी है ।

 कोरोना संकट में इंसानी स्वार्थ से परे 
पंछीयो में हौसला हफजाई होने लगी है,
प्रकृति के दूसरे पुत्रों की भी दूर गगन में 
ऊँची झलांगे अब दिखायी देने लगी है ।

स्वार्थी मानव की काली करतूतों की परते अब खुलने लगी है,
अंधाधुंध दोहन से बेसुध प्रकृति में अब थोड़ी जान आने लगी है ।

कैसे कह दु ये संकट समूची प्रकृति पर है,
मानव ही झूझ रहा है सिर्फ, 
बाकी प्रकृति तो मुस्करा रही है ।

धुंधली धुंधली सी ये हवायें कुछ रूहानी होने लगी है

[ लोकडाउन के समय यह रचनाकार की निजी रचना है ]


श्रीकांत शर्मा
स्काउट सचिव, 
लालसोट - (दौसा)






मन और पतंग - डॉ.वर्तिका गुलाटी

ऊँचे आकाश में उड़ती हूँ, 
विस्तृत गगन में, 
नीले अंबर में, 
हवा के संग-संग इठलाती हूँ,

स्वतंत्र ना होकर भी खुश हूँ, 
जिसकी डोर तोरे हाथ में, 
ऐ मनुज! मैं वो पतंग हूँ,

अपने सामर्थ्य  से बड़करआज कुछ कहती हूँ, 
एक छोटी बात तुझे बताती हूँ, 
अपने मन को तू मुझसा जान, 
दृढ़ता से उसको थाम, 

हवा विलासित प्रलोभनो की 
उसे बहा ना ले जाये कहीं, 
लक्ष्य से निगाहें भटक ना जाये कहीं,

संभल खड़ा रह मुश्किलो के आगे, 
 बेपरवाही मे कट ना जाये पतंग कहीं, 

अपने हुनर से दे तू नई ऊँचाई मुझको, 
सफलता के शिखर मिलेंगें, 
बस थामे रख मन की पतंग को, 

कहना बस इतना ही था मुझको, 
अब मर्जी तेरी दे ढील या तू खींच,

 मन तेरा मंजिल तेरी, 
डोर तेरी पतंग तेरी.... 

( ये लेखिका के निजी विचार है )
🌿डॉ.वर्तिका गुलाटी🌿

यह करे या वह करे ! :: वंदना जोन स्तुति

यह करे या वह करे ?

जब आपके सामने एक साथ दो स्थिति आ जाए और आपको किसी एक स्थिति या काम का चयन करना हो तो कैसे करे ? 
जिससे आप सही मुकाम पर पहुँच सके ।

आपकी जिंदगी में कभी कभी ऐसी परिस्थिति आती है जब आपको दो कार्यो में से किसी एक का चुनाव करना होता है । परंतु असमंजस रहता है कि किसे चुने और किसे छोड़े । दोनो ही कार्य सही लगते है। अतः सही या गलत का कैसे पता लगाए। तो हम इसी पर चर्चा करते है  कि आपको किसे चुनना है ? जिससे आप सही को चुन सके।

प्रायः हम सही, गलत के चक्कर मे पड़ते है पर चुनाव नही कर पाते है कि सही क्या है ? और गलत क्या ? तो यह करे ---

काम हो या स्थिति - वह अपनाइये जिसमे लाभ की संख्या अधिक हो और हानि कम हो। अर्थात जिसमे लाभ के बिंदु अधिक हो और हानि कम होती हो। वही काम आपको करना चाहिए वही कार्य आपके लिए बेहतर है वही आपके लिए श्रेष्ठ है।

दो कार्य ही नही किसी भी एक कार्य के लिए भी आप यही फार्मूला अपना सकते है। कि, उसके  लाभ हानि के बारे में जाने और लाभ की संख्या हानि की संख्या से अधिक हो तो वह काम आप कर सकते है।


जैसे- कला संबंधित कार्य, गंभीर होकर अपनी पढ़ाई , कॅरियर पर ध्यान देना

लाभ :- 
1 बड़े होकर आप कुछ ना कुछ ज़रूर बनोगे
2 आपको एक अच्छा व्यवसाय मिलेगा
3 आपका जीवन यापन अच्छा होगा ( पैसों की कमी नही )
4 आपका व आपसे जुड़े सभी लोगो का नाम रोशन होगा
5 आप एक अच्छे इंसान के रूप में जाने जाओगे ( सम्मान मिलेगा )
6 पूरा जीवन आपका आनंद में कटेगा

हानि :-
1 आपको सभी मनोरंजन के साधन हटाकर उनसे दूर रहकर केवल व्यवस्थित होकर पढ़ाई करना है ( हर स्थिति में )

कार्य-
शराब पीना, मौज़ मस्ती, माँ - बाप के पैसे पर ऐश करना,

लाभ-
1 कुछ समय का नशा, मौज़ मस्ती से थोड़े समय के लिए आनंद,

हानि-
1 खुद का स्वास्थ्य खराब करना
2 पैसे की बर्बादी ( धन का व्यर्थ व्यय होना )
3 स्वयं का नकारा साबित होना
4 कुछ भी मुकाम हासिल ना हो पाना
5 गलत दिशा में जाने के अवसर बनना
6 समाज द्वारा अपमानित होना ( सम्मान खो देना )

तो अब आप समझ गए होंगे कि आपको कौनसा कार्य करना चाहिए और कौनसा नही ???????

【 यह लेखिका के निजी उद्गार है 】



वंदना जोन "स्तुति"

भटेरी, जयपुर (राज.)